मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार पर राजनीतिक विवाद की लहर

मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार को लेकर राजनीतिक तकरार बढ़ी, कांग्रेस और AAP ने केंद्र को घेरा और BJP ने कर दी पलटवार।

हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार को लेकर राजनीति गरमा गई है। उनकी अंत्येष्टि में शामिल होने के दौरान कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) ने केंद्र सरकार पर धारदार हमला किया। उन्हें इस बात का दोषी ठहराया गया कि सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री के परिजनों के प्रति सम्मान नहीं दिखाया। इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि मनमोहन सिंह ने हमेशा देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाया और उन्हें सच्चे सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जानी चाहिए थी।

साथ ही, AAP ने भी इस मसले को उठाते हुए कहा कि सरकार को पूर्व पीएम की अंतिम यात्रा के लिए उचित प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए था। AAP प्रवक्ता ने कहा कि यह शर्मनाक है कि एक महान नेता को इस तरह की उपेक्षा का सामना करना पड़ा।

इस विवाद के बीच, केंद्रीय मंत्री और BJP अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस अपने नेताओं को बख्श नहीं रही है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने नेताओं की परवाह नहीं है और वे हमेशा राजनीति करना चाहते हैं। नड्डा ने आगे कहा, "राजनीतिक आधार पर इस तरह के आरोप लगाना सही नहीं है।" उन्होंने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए पूछा कि क्या उनका नेता, जो अब इस दुनिया में नहीं है, उनकी राजनीति के लिए साधन है।

इस राजनीतिक विवाद ने न केवल मनमोहन सिंह के सम्मान को लेकर बहस को जन्म दिया है बल्कि साथ में यह भी साफ कर दिया है कि भारतीय राजनीति में जब भी कोई बड़ा नेता निधन होता है, उसके बाद राजनीति का खेल ऐसे ही चलता रहेगा।

कांग्रेस ने अपनी तरफ से ध्यान दिलाया है कि ऐसे समय में सभी पार्टियों को एकजुट होना चाहिए लेकिन बीजेपी ने यह कहकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है कि वे इस मुद्दे पर किसी भी तरह का समझौता नहीं करेंगे। इस घटना ने सभी राजनीतिक दलों को एक चुनौती दी है कि वे अपने आचार-व्यवहार में सुधार लाएं ताकि इस तरह के विवादों से बचा जा सके।

आखिरकार, मनमोहन सिंह एक ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण नीतियां लागू कीं और देश को आर्थिक मजबूती प्रदान की। इसलिए, उनके अंतिम संस्कार की गरिमा बनाए रखना सभी राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है। अब देखना यह है कि क्या राजनीतिक दल इस घटना से कुछ सीख लेंगे या फिर आगे भी इस तरह के विवादों का सामना करेंगे।

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