सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी: किशोरियों को इच्छाओं पर नियंत्रण की HC सलाह रद्द
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामला निपटाते हुए हाईकोर्ट द्वारा किशोरियों को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखने के लिए दी गई सलाह को रद्द कर दिया। यह फैसला किशोरियों की स्वायत्तता और उनके अधिकारों के बारे में एक बड़ा बयान है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता पर ध्यान देते हुए कहा कि किशोरियों को अपनी इच्छाओं और भावनाओं को अभिव्यक्त करने से रोकने की सलाह न केवल अनुचित है, बल्कि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो सकती है।
यह मामला तब सामने आया जब हाईकोर्ट ने किशोरियों को सलाह दी थी कि वे अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखें, जिससे कि समाज में नैतिकता और सदाचार बनाए रखा जा सके। इस सलाह पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि यह सलाह काफी हद तक पुरानी सोच को दर्शाती है। जजों ने यह स्पष्ट किया कि किशोरियों का अधिकार है कि वे अपनी भावनाओं को समझें और उन्हें अभिव्यक्त करें।
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही यह भी कहा कि किशोरियों को अपनी इच्छाओं को लेकर कोई संकोच नहीं होना चाहिए। अदालत ने बताया कि इस तरह की सलाह देने से न केवल उनकी मानसिकता प्रभावित होती है, बल्कि यह उनके आत्म-सम्मान को भी ठेस पहुँचाती है। किशोरावस्था एक ऐसा समय होता है जब युवतियाँ अपने एहसासों और भावनाओं को समझती हैं, और ऐसे वक्त पर उन्हें इस तरह की सलाह देना अत्यंत गलत है।
जिज्ञासा, खोज और उत्सुकता किशोरियों की स्थिति का एक अनिवार्य हिस्सा है और उन्हें इस परिदृश्य में खुलकर विचार करने की आवश्यकता है। ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल किशोरियों को सशक्त बनाता है, बल्कि यह समाज में एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है कि हमें अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है। इससे स्पष्ट होता है कि किशोरियों की इच्छाएं और उनकी पहचान भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी अन्य किसी भी व्यक्ति की।
अगर समाज को बेहतर बनाना है, तो हमें किशोरियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना होगा, और उन्हें अपनी इच्छाओं और लक्ष्यों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। यह समय है कि हम किशोरियों को सम्मान दें और उन्हें अपनी पहचान बनाने में समर्थन करें।