सज्जन कुमार को जानलेवा सजा: एक लंबी न्याय यात्रा का निष्कर्ष

दिल्ली की अदालत ने सज्जन कुमार को एक अहम मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह मामला 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़ा हुआ है, जिसमें कई निर्दोष सिखों का हत्या की गई थी। इस केस का फैसला आने में लगभग चार दशकों का समय लगा, जो न केवल न्याय व्यवस्था की धीमी गति को दर्शाता है, बल्कि सिख समाज की संघर्षशीलता को भी उजागर करता है।

सज्जन कुमार एक पूर्व कांग्रस सांसद हैं और उन पर आरोप था कि उन्होंने दंगों के दौरान सिखों के खिलाफ हिंसा को उकसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब 1984 में दिल्ली में दंगे भड़के थे, तब उन्होंने दंगाइयों का साथ देते हुए सिखों के खिलाफ भड़काने वाले कुछ विशेष बयान दिए थे। इससे यह मामला और भी गंभीर हो गया था।

इस केस की शुरुआत तब हुई, जब 1994 में इस मामले पर पहली FIR दर्ज हुई। प्रारंभ में जांच धीमी थी और आरोपी को पकड़ने में कई साल लग गए। लेकिन, हालात तब बदले जब 2021 में केंद्र सरकार ने विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। SIT ने दोबारा से सबूत इकट्ठा किए और मामले की गहराई से जांच की।

इसके बाद अंततः 2022 में सज्जन कुमार को दोषी ठहराया गया। अदालत ने माना कि सज्जन कुमार ने जानबूझकर दंगों को उजागर करने के लिए समाज में नफरत फैलाने का काम किया।

सज्जन कुमार की सजा न केवल सिख समुदाय के लिए एक बड़ी जीत है बल्कि यह अन्य समाजों के लिए भी एक संदेश है कि न्याय में देरी कभी कभी भारी संकट का रूप ले लेती है, लेकिन अंततः सच्चाई की जीत होती है।

आखिरकार, 41 वर्ष बाद सज्जन कुमार को यह सजा मिलेगी, जिससे न्याय की एक नई रोशनी मिली है। बहुत से लोग अब भी वर्षों से न्याय के इंतजार में हैं, और यह मामला उन सभी लोगों को प्रेरित करता है कि भले ही समय लगे, न्याय अवश्य मिलेगा।

समाज के हर तबके को चाहिए कि वह ऐसे मामलों में सजग रहें और अपनी आवाज उठाते रहें। यह सिद्ध कर दिया गया है कि न्याय की प्रक्रिया कभी-कभी लंबी होती है, लेकिन इसके भीतर सच्चाई और मानवता की रक्षा कर सकती है।