शंभू और खनौरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन का अंत, 700 से ज्यादा किसान हिरासत में
पंजाब के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर विचारशीलता का दौर खत्म हो गया है। आखिरकार 13 महीने बाद पुलिस ने किसानों के विरोध प्रदर्शन को समाप्त कर दिया। हालात को काबू में करने के लिए प्रशासन ने बड़े पैमाने पर कार्रवाई की, जिसमें भारी पुलिस बल तैनात किया गया।
इस कार्रवाई में डल्लेवाल समेत लगभग 700 किसानों को हिरासत में लिया गया। ये किसान सरकार के नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे, और उन्होंने अपने मुद्दों को लेकर लंबे समय से डटे हुए थे। पुलिस ने प्रदर्शन स्थल पर बुलडोजर चलाकर किसानों के टेंट और अन्य अस्थायी ढांचों को तोड़ने का काम किया।
प्रशासन का दावा है कि यह कार्रवाई सार्वजनिक स्थान को खाली कराने और आम जनता की सुरक्षा के लिए की गई। हालांकि, किसानों और उनके समर्थकों का कहना है कि यह कार्रवाई पूरी तरह से अधिकारों का उल्लंघन है। किसानों ने इस बात पर जोर दिया कि वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ते रहेंगे।
शंभू और खनौरी बॉर्डर पर किसानों का यह संघर्ष लगभग 13 महीने लंबा चला। इस दौरान कई किसान नेता और समर्थक सड़कों पर डटे रहे और केंद्र सरकार से अपनी मांगें पूरी करने की अपील करते रहे। अब जब पुलिस ने पुराने ढांचे को तोड़ दिया है और किसानों को हिरासत में लिया है, तो यह स्पष्ट है कि सरकार ने इस मुद्दे को खत्म करने का इरादा कर लिया है।
राजनीतिक धारा को देखते हुए, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या किसान संगठनों के विरोध की लहर जारी रहती है या फिर वे अपनी रणनीति में बदलाव करते हैं। हालाँकि, अब किसानों का बड़ा जमावड़ा फिर से देख सकेंगे या नहीं, यह निश्चित नहीं है। आने वाले दिनों में इस मामले पर राजनीति और ज्यादा गरमाएगी, जिसका सीधा असर किसानों के भविष्य पर पड़ सकता है। एंटी-एग्रीकल्चरल लॉ के मुद्दे पर यह आंदोलन सिर्फ पंजाब तक सीमित नहीं रहा; यह संपूर्ण देश में एक मिसाल बन गया।
सरकार को चाहिए कि वह किसानों की समस्याओं को गंभीरता से ले और उनके साथ संवाद के नए विकल्पों पर विचार करे ताकि किसानों के अधिकारों का सम्मान हो सके। अगर ऐसा नहीं होता है, तो स्थिति और भी अधिक अव्यवस्थित हो सकती है।