राष्ट्र सेवा में समर्पित 100 साल: कुष्ठ आश्रम की प्रेरणादायक कहानी

भारत में कुष्ठ रोगियों के कल्याण के लिए पिछले कुछ दशकों में कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा में खड़ा हुआ कुष्ठ आश्रम एक नई प्रेरणा का स्रोत बन गया है। यह आश्रम भारतीय संघ के 100 साल पूरे होने के मौके पर स्थापित किया गया है, और इसकी स्थापना में योगदान देने वाले सदाशिव कात्रे का समर्पण इस कहानी को और भी खास बनाता है।

कुष्ठ आश्रम का यह प्रोजेक्ट 100 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है, जो न केवल कुष्ठ रोगियों को चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराता है, बल्कि उन्हें एक नए जीवन की दिशा भी दिखाता है। सदाशिव कात्रे ने इस आश्रम की स्थापना को अपने जीवन का उद्देश्य माना है। उन्होंने बताया कि, "यह केवल एक आश्रम नहीं है, बल्कि यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक प्रयास है।"

आश्रम में न केवल चिकित्सा सुविधा है, बल्कि रोगियों के लिए कौशल विकास ट्रेनिंग, मानसिक स्वास्थ्य पर परामर्श और सामाजिक समर्पण के कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। यहाँ रोगियों को न केवल शारीरिक उपचार मिलता है, बल्कि उन्हें मनोवैज्ञानिक समर्थन भी दिया जाता है, ताकि वे समाज में समुचित तरीके से फिर से जीवन जी सकें।

सदाशिव कात्रे ने यह भी बताया कि आश्रम में स्वयंसेवकों की एक टीम काम कर रही है, जो रोगियों के साथ नियमित रूप से संपर्क बनाए रखती है और उन्हें समाज में पुनः स्थापित करने के लिए मदद करती है। यहाँ पर कुछ रोगियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि, "हमें यहाँ पर ऐसा महसूस होता है जैसे हम अपने घर में हैं।"

आज के दौर में जब समाज के कई हिस्से में कुष्ठ रोगियों के प्रति भेदभाव जारी है, इस आश्रम जैसे प्रयास अत्यंत आवश्यक हैं। यह आश्रम रोगियों को समाज में इज़्जत दिलाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहा है।

इस प्रकार, संघ के 100 साल पूरे होने पर न सिर्फ यह आश्रम एक प्रेरणा का स्रोत बना है, बल्कि यह कुष्ठ रोगियों के लिए एक नया जीवन का द्वार भी खोलता है। आश्रम के माध्यम से सदाशिव कात्रे और उनकी टीम ने साबित कर दिया है कि सहयोग और समर्पण से किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। यह एक नया अध्याय है, जो एक सकारात्मक संदेश के साथ आगे बढ़ रहा है।