कोहली की कवर ड्राइव: मजबूरी या तकनीकी कमजोरी?

क्रिकेट की दुनिया में वैसी बल्लेबाजी करना आसान नहीं है जो हालात के मुताबिक हो। भारत में कई दर्शक और युवा खिलाड़ी ऐसे हैं जो सचिन तेंदुलकर की क्‍लासिक बैटिंग से प्रेरित हैं। तेंदुलकर ने अपने समय में कवर ड्राइव को एक कला के रूप में मनाया था। लेकिन, आज के कोहली जैसे हार्ड-हिटिंग बैट्समैन कवर ड्राइव का उपयोग करते समय दिलचस्प नजर आते हैं। क्या ये मजबूरी है या कुछ अलग?

कवर ड्राइव खेलना ऐसा शॉट है जो जितना खतरनाक हो सकता है, उतना ही जोखिमपूर्ण भी है। कोहली के लिए ये एक ऐसे शॉट के रूप में उभरा है जिसके खेलने में उनकी तकनीकी कमजोरी छुपी हुई है। उनकी मौजूदगी में गेंदबाजों ने लगातार स्टंप के बाहर गेंदें डालकर उन्हें परेशान किया है। जैसे कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हालिया टेस्ट में भी देखा गया। कवर ड्राइव का गैर-प्रभावी होना उनकी बल्लेबाजी की गति को प्रभावित करता है।

सचिन की खासियत ये रही कि उन्होंने हर गेंद पर सही तरीके से प्रतिक्रिया दी। उन्होंने अपने समय में जो अनुभव हासिल किया, उसे एक फ्रेमवर्क के रूप में इस्तेमाल किया। जबकि कोहली कुछ हद तक अपनी प्राकृतिक शॉट्स पर निर्भर करते हैं। क्या ये कहीं न कहीं उन्हें एक ही धारा में चलने से रोक रहा है?

यह देखने की बात है कि क्या कोहली सचिन के अनुभवी सिद्धांतों को अपनाते हैं। इस बात के संकेत मिलते हैं कि वे अपनी बैटिंग तकनीक पर विचार कर रहे हैं, लेकिन इसे लागू करने में समय लगेगा। कवर ड्राइव की चुनौती केवल तकनीकी नहीं होती; यह मानसिकता का भी परिणाम है। भारतीय टीम के फैंस उम्मीद करते हैं कि कोहली जल्द ही इसे सुधारेंगे। अगर वे सचिन के दृष्टिकोण को समझते हैं, तो उनकी बल्लेबाजी में और निखार आ सकता है।

अंततः, कोहली की कवर ड्राइव का मामला मजबूरी या तकनीकी कमजोरी से कहीं ज्यादा है। इसे एक चुनौती के रूप में लेना होगा ताकि वे अपने खेल को और बेहतर बना सकें। क्या कोहली अपनी शैली में बदलाव कर पाएंगे? यह तब ही स्पष्ट होगा जब वे सचिन की सीखी गई तकनीकों को अपने खेल में लागू करेंगे।