भारतीय भाषाएँ: एकता और समृद्धि की मिसाल
भारत एक ऐसा देश है जहाँ भाषाएँ अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन उनका आपसी संबंध अद्भुत और समृद्ध है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय भाषाएँ हमेशा एक-दूसरे को बिना द्वेष के स्वीकार करती हैं और समृद्ध करती हैं। यह विचार भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्वों में से एक है।
भारतीय भाषाओं की विविधता और समृद्धि को देखकर ही समझ में आता है कि किस तरह एक भाषा दूसरी भाषा को प्रभावित करती है। हिंदी, तमिल, बंगाली, गुजराती, और अन्य कई भाषाएँ विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। पीएम मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि ये भाषाएँ केवल संवाद का माध्यम नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सोच और ज्ञान की भी प्रतिनिधि हैं।
उनका यह भी कहना था कि भारतीय भाषाएँ एक-दूसरे को अपनाते और विकसित करते रहना चाहिए। उदाहरण के लिए, हिंदी में कई ऐसे शब्द और वाक्यांश हैं जो अन्य भाषाओं से आए हैं। इस प्रकार, संस्कृतियों का आदान-प्रदान और एक-दूसरे के प्रति सम्मान ही हमारी एकता का आधार है।
पिछले कुछ वर्षों में, हम भारतीय भाषाओं की दुर्दशा को देख सकते हैं। ज्ञान और तकनीकी के इस युग में, कई नई भाषाएँ और बोलियाँ तेजी से विकसित हो रही हैं। ऐसे समय में, यह जरूरी है कि हम अपनी मौलिक भाषाओं को पहचाने और उन्हें प्राथमिकता दें। पीएम मोदी ने यह भी कहा कि विद्यार्थियों के लिए उनकी मातृभाषा में शिक्षा लेना जरूरी है ताकि वे अपनी संस्कृति और पहचान को संजो सकें।
भाषाएँ न केवल संवाद का माध्यम हैं बल्कि यह हमारी संस्कृति और आस्था का प्रतीक भी हैं। हमारी माता-पिता और दादाजी-नानी की भाषाएँ हमारी पहचान हैं। इसीलिए हमें इनके संरक्षण के लिए तत्पर रहना चाहिए।
इस संदर्भ में, पीएम मोदी ने बोधि वृक्ष के आसपास भाषाई समृद्धि की चर्चा की, जहाँ बुद्ध की ज्ञान की वृत्ति का प्रसार हुआ। उन्होंने कहा कि जब हम अपनी भाषाओं का सम्मान करते हैं, तभी हम उस ज्ञान का प्रसार कर पाते हैं जो हमारे पूर्वजों से हमें विरासत में मिला है।
समता, विविधता और एकता का यह संदेश हमें याद करवाता है कि एक-दूसरे की भाषाओं का सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी है। पीएम के इस उद्घाटन ने यह स्पष्ट किया है कि भारतीय भाषाओं की शक्ति हमारे देश को एक मजबूत बंधन में बांधती है।